नई ‌‌‌‌‌‌इबारत

रविवार, 3 जून 2018

एक कार्यक्रम में मिले टास्क ने गायक बना दिया: मेहर

रमेश चंद्र जोशी यूं तो गेट टू गेदर कार्यक्रम में ऑफिसर हमेशा कोई ना कोई गतिविधियां किया करते हैं, जबलपुर में डिप्टी कमिश्नर रहते हुए एक कार्यक्रम में जाना हुआ था जहां मुझे मिले टास्क गायन ने मेरा जीवन ही बदल दिया, कार्यक्रम में संगीत के साथ-साथ मनोरंजक के कार्यक्रम का आयोजन था, जिसमें एक दूसरे को टास्क देकर उस पर मनोरंजन करना था, उसमें मिले टास्क मैं गायन का टास्क दिया गया जिस पर मैं झिझकते हुए मंच पर पहुंचा और अपनी पसंद का गीत जो मुझे उस समय कुछ याद था- ओह रे ताल मिले नदी के जल में, नदी मिले सागर में, सागर मिले कौन से जल में कोई जाने ना .... पेश किया तो उपस्थित सभी अधिकारियों और अधीनस्थ कर्मचारी वाह-वाह कर उठे, जिससे मैं रोमांचित हो गया। सभी ने मुझे एक गायक के रूप में अपनी प्रतिभा को निखारने की सलाह दी। वहां उपस्थित हारमोनियम वादक मित्र से मैंने बाकायदा हारमोनियम सीखा और धीरे-धीरे मेरी गायकी कार्यक्रमों की जान बन गई। अब यह स्थिति है की कार्यक्रम के इनविटेशन बाद में छपते हैं लोग मुझे पहले आमंत्रित कर लेते हैं। यह कहना है अपर आयुक्त हाउसिंग बोर्ड संतोष कुमार मेहर का जिन्होंने अपनी कार्यकुशलता के साथ-साथ गायकी से अपने ऑफिसर्स और अधीनस्थ कर्मचारियों का दिल जीत लिया है। ऐसे ही व्यस्त समय के दौरान उनसे बातचीत करने का मौका मिला, तब उन्होंने काम के बीच में ही अपना वार्तालाप शुरू कर दिया और मुस्तैदी से कार्य निपटाते रहे। इस बीच उनकी बातों का मैं भी कायल हो गया, बात-बात में हंसी मजाक के साथ जब भी वक्त मिलता वह कोई ना कोई गीत गुनगुना लेते। उनके इस कार्य के बीच चाहे जितनी बड़ी फाइल आ जाए या किसी मुद्दे पर बातचीत हो वे निर्भीक होकर करने लगते और फिर बातचीत में लग जाते। इस बीच जब भी उन्हें समय मिलता वे कुछ गुनगुना देते या ऐसा हास्य का वाक्य छेड़ देते जिससे उपस्थित जन ठहाके लगाने से अपने आपको नहीं रोक पाते। यूं तो काम के बोझ से या मानसिक थकावट से लोगों को व्याकुल होते हुए देखा है, लेकिन अपने काम को एंजॉय करते हुए बहुत कम अधिकारियों को देखा है, ऐसे ही अधिकारी हैं अपर आयुक्त एसके मेहर जिन्होंने अपने काम के बल पर कई कार्यों में अपने विभाग के साथ साथ जनता और अधिकारियों के साथ राजनेताओं को भी खुश कर दिया है। उन्होंने विभागीय एवं व्यक्तिगत श्रेणी में कई अवॉर्ड जीते हैं और जो कार्य भी हाथ में लेते हैं, उन्हें समय सीमा में ही पूरा कर देते हैं। गायकी की विधा में पारंगण हो चुके अपर आयुक्त एसके मेहर ने अपने घर में एक स्टूडियो का भी निर्माण कर लिया है, जिसमें वह गायन और वादन के साथ-साथ अपना अभ्यास निरंतर करते रहते हैं। उन्होंने अपनी एक आर्केस्ट्रा टीम भी बना ली है जिसमें हाउसिंग बोर्ड की महिला कर्मचारी और दो युवतियां एवं युवक शामिल हैं, वे बखूबी पारिवारिक एवं निजी कार्यक्रमों में प्रस्तुति देते रहते हैं। साइकिल चलाने का भी रखते हैं शौक अपर आयुक्त एसके मेहर को साईकिल चलाने का भी शौक है, जब भी समय मिलता है वे सायकल चलाने निकल पढ़ते हैं। कम से कम 10 से 20 किलोमीटर तक साइकिल से घूमते-फिरते रहते हैं। उन्हें जब भी अवकाश मिलता है या समय मिलता है वे साइकल लेकर निकल पड़ते हैं। घूमने फिरने के शौकीन अपर आयुक्त एसके मेहर ने कार से करीब-करीब पूरा भारत घूम लिया है। पिता से मिला अनुशासित जीवन पिता से मिले अनुशासित जीवनच की वजह से उन्होंने अपनी प्रतिभा स्कूल कॉलेज में पढ़ाई में दिखाई। उसी अनुशासित जीवन कला का ही परिणाम है कि व्यस्त दिनचर्या के चलते अपने हुनर और शौक में रमे रहते हैं। अपने अंदर छिपी प्रतिभा जीवन काल के 35 साल बाद सामने आई और उसे अपना शौक बनाकर अब अपनी कला को प्रदर्शित करने से नहीं चुकते। जिससे सहयोगी और अधिकारी खुश कार्यक्रमों में खुश तो होते ही हैं वहीं लोग उन्हें महफिल की जान कहकर बुलाने लगे हैं। उनके जेहन में हर वक्त और हर एक के लिए एक गीत है जो हमेशा जुबान पर रहता है- राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है, दुख तो अपना साथी है।